क्या राहुल गांधी टीम बनाने में जुट गए हैं?
कई युवा नेताओं के साथ चल रही पार्टी की बातचीत।
जुलाई महीने में राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के सोशल मीडिया डिपार्टमेंट की बैठक को संबोधित करते हुए कहा था। 'बहुत सारे लोग हैं जो डर नहीं रहे हैं। कांग्रेस के बाहर हैं। उनको अंदर लाओ और जो हमारे यहां डर रहे हैं।
उनको बाहर निकालो। चलो भैया जाओ। आरएसएस के हो, जाओ भागो, मजे लो। नहीं चाहिए, जरूरत नहीं है तुम्हारी । हमें निडर लोग चाहिए। ये हमारी आइडियोलॉजी है।
लगता है कि राहुल गांधी ने जो कहा था। उसकी तरफ उन्होंने कदम बढ़ा दिया है। वह अब नई टीम बनाने की कोशिश में लग गए हैं। चनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को वह पार्टी में लेना चाहते हैं।
प्रशांत किशोर के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है। पिछले दिनों उनकी कन्हैया कुमार से भी मुलाकात हुई। यह मुलाकात इस मायने में महत्वपूर्ण है। कि कन्हैया कुमार में वामदल अपना भविष्य देख रहे हैं। लेकिन कन्हैया के कांग्रेस में आने की चर्चा है। कन्हैया कुमार बीजेपी है। के खिलाफ अपनी राजनीति का दायरा बढ़ाना चाहते हैं।
सीपीआई के अंदर वह काफी समय से अपने को सहज नहीं पा रहे हैं। गुजरात के दलित चेहरा कहे जाने वाले जिग्नेश मेवाणी भी कांग्रेस में शामिल होने के लिए राहुल गांधी के संपर्क में हैं। इसी तरह अलग-अलग राज्यों के करीब एक दर्जन युवा नेताओं को कांग्रेस ने चिन्हित किया है। जिनसे किसी न किसी स्तर पर इन दिनों संवाद चल रहा है।
क्यों पड़ी जरूरत ?
राहुल गांधी ने जब भी पार्टी का नेतृत्व संभालने की ओर कदम बढ़ाया था। तो उस वक्त उनकी पार्टी के अंदर अलग-अलग राज्यों की नुमाइंदगी करने वाली युवा ब्रिगेड को टीम राहुल नाम दिया गया था। इस युवा बिग्रेड में जो भी चेहरे थे। उनमें से ज्यादातर से राहुल के बहुत दोस्ताना संबंध थे।
इसी वजह से यह टीम पार्टी के अंदर काफी प्रभावी भी हो गई थी। अलग-अलग मौकों पर राहुल ने उन सबको आगे बढ़ने का मौका भी दिया। लेकिन अचानक उनकी टीम के ज्यादातर चेहरों ने अपने अलग रास्ते चुन लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए और केंद्र में मंत्री बन गए। जितिन प्रसाद ने भी बीजेपी में ही अपना भविष्य देखा और कांग्रेस छोड़ दी।
सुष्मिता देव ने भी कांग्रेस छोड़कर टीएमसी का दामन थाम लिया। सचिन पायलट लगभग जा ही चुके थे। लेकिन किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। और वह बाउंड्री पार नहीं कर पाए। मिलिंद देवड़ा को लेकर भी कहा जाता है। कि उनका भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
एक-एक कर टीम राहुल के सदस्यों के पार्टी छोड़ने पर राहुल गांधी पर सवाल उठे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने तो सुष्मिता देव के पार्टी छोड़ने पर ट्वीट के जरिये तंज कसने में जरा सी भी देरी नहीं की।
उन्होंने यह लिखा था-'सुष्मिता देव का हमारी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा, जब युवा चले जाते हैं। तोह बूढ़ों को इसे मजबूत करने के प्रयासों के लिए दोषी ठहराया जाता है। पार्टी आगे बढ़ती रहती है । • आंखें बंद किए।'
कैप्टन पर फैसला उन्हीं का।
पिछले दिनों पंजाब का जो घटनाक्रम रहा। उसमें भी राहुल गांधी का बड़ा योगदान माना जाता है। लंबे वक्त से राहुल का कैप्टन के साथ टकराव चल रहा था। लेकिन हर बार कैप्टन के पार्टी छोड़ देने के डर से उन्हें अपने पैर खींचने पड़ जाते थे। कैप्टन का विकल्प तैयार करने के लिए राहुल गांधी ने 2013 में प्रताप सिंह बाजवा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था। लेकिन 2017 के चुनाव से पहले कैप्टन की जिद के आगे उन्हें हटाना पड़ गया था।
कैप्टन ने उस वक्त भी पार्टी छोड़ने की धमकी दे दी थी। राहुल गांधी यह भरोसा नहीं कर पा रहे थे। कि कैप्टन के बिना चुनाव जीता जा सकता है या नहीं? सिद्ध के मामले में भी यही देखा गया।
पार्टी में उचित सम्मान देने के वादे पर पार्टी में शामिल कराए गए सिद्धू को कैप्टन ने साढ़े चार साल कोई अहमियत नहीं दी। कहते हैं कि पिछले दिनों शीर्ष एक स्तरीय बैठक में राहुल गांधी ने खुलकर कहा कि पार्टी में कोई भी अनुशासन के दायरे से बाहर नहीं जा सकता।
जो भी पार्टी छोड़ना चाहे जा सकता है। लेकिन उसके डर में और किसी को मनमर्जी करने की इजाजत नहीं दी सकती। कहा जा रहा है कि पुरानी टीम से राहुल गांधी को काफी कुछ सीखने को मिला है। नई टीम बनाने में राहुल गांधी उस शख्स को जोड़ने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। जो विचारधारा के आधार पर मजबूती रखता हो।
निष्कर्ष
आशा है आपको यह समझ में आ गया होगा। इस लेख में, हमने आपको क्या राहुल गांधी टीम बनाने में जुट गए हैं? के बारे मे बताया। अगर आपको यह लेख पसंद आया हो।
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