चन्नी से भी चैन न मिला तो न इस्तीफा लेकर आए सिद्धू।
मुश्किल से कैप्टन को हटवा पाए थे, अब नए CM से नाखुश नजर आ रहे।
पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को गद्दी से उतारने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के महज दो महीने 10 दिन बाद इस्तीफा दे दिया | सिद्धू के इस फैसले से कांग्रेस पार्टी के नेता और विरोधी नेता तक, हर कोई हैरान है। सिद्धू पिछले तीन दिन से शांत होकर घर बैठ गए थे।
सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी थी । जिसके चलते पार्टी हाईकमान ने 18 जुलाई को सुनील जाखड़ को अध्यक्ष पद से हटाकर सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था।
अध्यक्ष पद मिलने के बाद सिद्धू ने पंजाब में कई जगहों पर रोड शो किए। उन्होंने अमरिंदर के खिलाफ मोर्चा खोले रखा। आखिरकार अमरिंदर को इस्तीफा देना पड़ा। चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया गया। इस फैसले के बाद सिद्ध कई मौकों पर चन्नी के साथ दिखे, हंसते हुए उन्हें मिठाई खिलाई।
हालांकि चन्नी के मंत्रिमंडल के गठन को लेकर हुई उठा-पटक के बीच सिद्धू फिर नाराज हो गए। आखिरकार उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उन्होंने पार्टी में बने रहने की बात कही है।
सिद्धू के इस्तीफे के बाद पंजाब कांग्रेस के कोषाध्यक्ष गुलजार इंदर सिंह चहल, पंजाब कांग्रेस के महासचिव योगिंदर सिंह •ढींगरा और नई सरकार में मंत्री रजिया सुल्ताना ने भी अपने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया।
ये सिद्धू के करीबी माने जाते हैं। कैप्टन अमरिंदर के इस्तीफे के बाद सिद्धू खुद सीएम बनना चाहते थे। लेकिन पार्टी ने कुछ और ही फैसला किया। पार्टी के इस फैसले को सिद्धू ने उस समय तो स्वीकार कर लिया। हालांकि, अब इस्तीफे के बाद इसकी पुष्टि होती दिख रही है। कि सिद्धू सीएम नहीं बनाए से नाराज हैं।
सोनिया गांधी को लिखे पत्र में सिद्धू ने कहा कि वह सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते। और उनके लिए पंजाब के हित सबसे ऊपर हैं। इस पूरे घटनाक्रम पर चुटकी लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक ट्वीट करके हाईकमान को चेताया।
उन्होंने लिखा, मैंने पहले पहले ही कहा था कि यह स्थाई आदमी नहीं हैं। न ही बॉर्डर पर मौजूद एक राज्य को संभालने के लायक है।
सिद्धू की ताजी नाराजगी की वजह ?
पंजाब की कमान चरणजीत सिंह चन्नी को सौंपे जाने के फैसले को सिद्धू ने अपनी जीत की तरह दिखाया। खुद को सुपर सीएम की तरह प्रोजेक्ट करते हुए सिद्धू चन्नी के कंधे पर हाथ रखकर कई जगह चलते हुए देखे गए।
लेकिन चन्नी मंत्री पद और अफसरों की तैनाती के मुद्दे पर सिद्धू की नहीं चलने दी। आईपीएस सहोता को डीजीपी बनाए जाने पर सिद्धू नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को क्लीन चिट देने वाले को डीजीपी बनाया गया है।
इसके अलावा पूर्व डीजीपी सुमेध सैनी के वकील को महाधिवक्ता बनाए जाने के फैसले से भी सिद्धू नाराज हो गए। सिद्धू राणा गुरजीत सिंह, ब्रह्म मोहिंद्रा और विजय इंदर सिंगला को दोबारा मंत्री नहीं बनने देना चाहते थे। इस मामले में भी उनकी नहीं चली। तीनों को फिर से मंत्री बना दिया गया।
अब क्या संदेश है पार्टी आलाकमान का ?
मंत्रिमंडल गठन को लेकर राहुल गांधी ने जब चन्नी को बुलाया तो सिद्ध उनके साथ जाना चाहते थे। लेकिन पार्टी हाईकमान ने सिद्धू को मना करके केवल चन्नी को बुलाया। आखिरी बैठक में सिद्धू की दी गई लिस्ट को भी बदल दिया।
सिद्धू के विरोध के बावजूद सुखजिंदर सिंह रंधावा को गृह विभाग दिया गया। कहा जाता है कि पार्टी के भीतर कामकाज को सिद्धू के खिलाफ दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ तक विरोध होने लगा। सूत्रों के मुताबिक, चन्नी के सीएम बनने के बाद सिद्धू ने यह दर्शाना शुरू कर दिया। कि चन्नी उनके कहे में चलेंगे। सार्वजनिक मौकों पर वह जिस तरह चन्नी पर हावी होते नजर आए, यह पार्टी को पंसद नहीं आया।
चन्नी ने मंझे नेता जैसे बर्ताव किया।
सिद्धू ने नए सीएम चन्नी को भी अपने हिसाब से चलाने की कोशिश की। लेकिन अनुभवी नेता होने के नाते चन्नी ने अपने विवेक से काम लिया। चन्नी अपने अनुसार नियुक्तियां करते रहे। उन्हें लगने लगा कि अगर शुरू से वे सिद्धू की मानने लगे तो आगे दिक्कत हो सकती है।
कहा जाता है कि सिद्धू यह मान बैठे थे कि 2022 में उन्हें ही सीएम पद का चेहरा बनाया जाएगा। जैसे-जैसे उनका इंतजार लंबा होगा तो वो बेचैन हो जाएंगे।
जिस तरह कैप्टन का विरोध किया, वैसा ही विरोध चन्नी को झेलना पड़ सकता है। इसलिए चन्नी ने रणनीति बनाई कि सादगी से अपना काम करते जाएं और बिना शोर-शराबे वाली अलग इमेज पर फोकस किया जाए।
निष्कर्ष
आशा है आपको यह समझ में आ गया होगा। इस लेख में, हमने आपको चन्नी से भी चैन न मिला तो न इस्तीफा लेकर आए सिद्धू। के बारे मे बताया। अगर आपको यह लेख पसंद आया हो।
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