कबीर खान: 83 मूवी' के लिए मुल्क से मिली तारीफ। कहा ऑस्कर से बड़ी है।
पूरा देश फिल्म 83 मूवी के साथ वर्ल्ड कप की जीत का जश्न मना रहा है। आप इस जश्न को कैसे सेलिब्रेट कर रहे हैं?
मैं तो पूरा दिन अपने फोन के मेसेजेस पढ़ता रहता हूं। कहा (हंसते हुए) ।जिस तरह की सराहना मुझे 83 मूवी से मिल रही है। मैं पूरी तरह से समझता हूं। वैसा एप्रिशिएशन फिल्ममेकर को जिंदगी में एक ही बार मिलता है।
फिल्म को लेकर मेरे तीन साल बहुत हेक्टिक बीते हैं। और मगर अब ओमिक्रॉन के कारण मैं घर पर ही हूं। तो सुकून से सब लोगों के फोन और मेसेजेस का आनंद ले रहा हूं। और मेसेजेस भी दो-दो पेज के आ रहे हैं कि। की कैसे वो फिल्म देखकर भावनात्मक रूप से हिल गए हैं।
और मेरी एक परिचित ने मुझे मेसेज भेजा कि। कैसे वो क्रिकेट से बहुत नफरत करती थी। मगर चूंकि मैं उनका दोस्त हूं। तो उन्होंने मेरे लिए 83 को देखना गवारा किया। और साथ ही फिल्म देखने के बाद उन्हें लगा कि। खेल उन पर इस तरह का जादू कर सकता है।
तो क्या उन्होंने अपनी जिंदगी का एक बड़ा और बहुत अहम हिस्सा इसे बिना देखे खो दिया? उनका ये मेसेज पढ़कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। और मेरी आंखों में से आंसू आ गए थे।
मेरे लिए सबसे बड़ा रिवॉर्ड यही है कि। मैं क्रिकेट को पसंद न करनेवालों को भी क्रिकेट के प्रति बहुत जज्बाती कर पाया। उन्हे समझा पाया।
आप नैशनल अवॉर्ड विजेता फिल्मकार रहे हैं। और अब लोग कह रहे हैं कि। यह फिल्म ऑस्कर के लिए जानी चाहिए। तोह आप क्या कहना चाहेंगे?
मुझे लगता है। ऑस्कर एक ओवर रेटेड अवॉर्ड है। वो अमेरिकन अवॉर्ड हैं। जोकी उनकी इंडस्ट्री के लिए बहुत बड़ी बात है। और साथ ही मेरे लिए उस मान्यता के मायने नहीं हैं। मेरे लिए वैलिडेशन वो है। जो मुझे अपने मुल्क से मिलता है।
अपने लोगों से मिलता है। या फिर बाहर के लोगों से मिलता है। पर ये जरूरी नहीं कि। अवॉर्ड के रूप में मिले। और वो भी अमेरिका से। जिस तरह की भावनाओं से भरी तारीफ मुझे मिल रही है।
वो मेरे लिए ऑस्कर से बड़ी है। अगर ऑस्कर मिला, तो बहुत खुशी-खुशी ले लेंगे, मगर उसकी खास ख्वाहिश नहीं है।
आप मानते हैं कि। क्रिकेट में मैच फिक्सिंग के आने के बाद कई क्रिकेट प्रेमियों का दिल टूटा? क्रिकेट को शक की निगाह से देखा जाने लगा?
अब 83 लोगों के दिलों में क्यों इस कदर उतर गई। क्योंकि लोगों ने इन चीजों से परे उसे एक खेल के रूप में पाया। वे सब खिलाड़ी सिर्फ और सिर्फ देश के लिए खेले थे। और 83 वर्ल्ड कप के बाद भारत क्रिकेट का केंद्र बन गया। पैसा आने लगा। मगर फिर इसका व्यावसायिकरण हुआ।
और मैच फिक्सिंग सामने आया, क्रिकेट पर सवाल उठने लगे। लोगों को शक होने लगा कि। क्या जो हम लोग देख रहे हैं। वो क्या झूठ था? जो बहुत दुखद है। मगर नेगेटिविटी कितनी भी हो। हमें स्पोट्र्समैन शिप को भूलना नहीं चाहिए। 83 उसी जादू को जगाती है।
फिल्म को जितनी अभूतपूर्व सराहना मिली। और उस तरह से बॉक्स ऑफिस कलेक्शन नहीं मिल रहे। बताइये क्या आप निराश हैं?
डिसअपोइंटमेंट तो है। मगर मैं महामारी के बीच में बोलूं कि। मैं सायद निराश हूं। तो बहुत ओछा कहलाऊंगा। अब ये किस्मत की भी तो बात है कि। जिस दिन हमने फिल्म रिलीज की।
उसी दिन दो राज्यों में नाइट कर्फ्यू की घोषणा हो गई।और फिर चार राज्यों में हुई। फिर अगले दिन दिल्ली का बॉक्स ऑफिस बंद हो गया। और अब जब महामारी का डर फैलने लगा और चीजें बंद होने लगी।
तो कपिल सर ने एक ही बात कही कि। 1983 में हमने पैसे नहीं कमाए थे। इज्जत कमाई थी। और तुमने भी इज्जत कमाई हैं। जो तुम्हारे साथ जिंदगी भर रहेगी।
निष्कर्ष
आशा है आपको यह समझ में आ गया होगा। इस लेख में, हमने आपको कबीर खान: 83 मूवी' के लिए मुल्क से मिली तारीफ। कहा ऑस्कर से बड़ी है। के बारे मे बताया, अगर आपको यह लेख पसंद आया हो।
तो, कृपया अपने दोस्त के साथ साझा करें। अगर आप नहीं समझे हैं। तो आप मुझे कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं। धन्यवाद
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